नई दिल्ली: भारत सरकार की योजना के अनुसार, 1 अप्रैल 2026 से शुरू होने वाली जनगणना 2027 पूरे देश में निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्विन्यास का मार्ग प्रशस्त करेगी। यह 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना होगी, जो राष्ट्रीय सीमा निर्धारण के लिए आधार प्रदान करेगी। इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया के तहत विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों की जनसांख्यिकी के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं में बदलाव किया जाएगा, जिससे प्रतिनिधित्व और चुनावी प्रक्रिया में न्याय सुनिश्चित हो सकेगा।
जनगणना से पहले कई चुनौतियाँ और चर्चाएँ भी सामने आई हैं, जिनमें शामिल हैं:
- संसाधनों की उपलब्धता
- तकनीकी तैयारियाँ
- जनभागीदारी को लेकर सुझाव
विशेषज्ञों का मानना है कि यह जनगणना और उससे जुड़े सीमांकन कार्य देश की लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूत बनाएंगे और चुनावी क्षेत्र की वास्तविक स्थिति को बेहतर ढंग से दर्शाने में मदद करेंगे।
सरकारी अधिकारियों द्वारा इस प्रक्रिया को पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से पूरा करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं। इसके अलावा, जनसंख्या एवं निर्वाचन आयोग के बीच समन्वय को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि सीमा निर्धारण में कोई देरी न हो।
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