दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में भारतीय सेना में गुझर समुदाय की रेजिमेंट बनाने की याचिका को खारिज कर दिया है। इस याचिका में दावा किया गया था कि ब्रिटिश काल में 19वीं सदी में कई समुदायों के लिए अलग-अलग रेजिमेंट बनाई गई थीं, इसलिए गुझर रेजिमेंट भी गठित की जानी चाहिए। लेकिन अदालत ने इस दावे को स्वीकार नहीं किया।
याचिका के प्रमुख तथ्यों का संक्षिप्त अवलोकन
- याचिकाकर्ता ने ब्रिटिश शासन के दौरान बनी विभिन्न रेजिमेंटों के उदाहरण प्रस्तुत किए।
- न्यायालय ने इसे मामले से असंबंधित माना और अस्वीकार कर दिया।
- सेना की रेजिमेंटों का गठन सामरिक और प्रशासनिक जरूरतों के आधार पर होता है।
- समाज विशेष के लिए अलग रेजिमेंट बनाने की मांग न्यायालय ने उचित नहीं समझी।
फैसले का प्रभाव और आगे की संभावना
यह फैसला गुझर समुदाय के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, जो वर्षों से अपनी रेजिमेंट बनाने की मांग कर रहे थे। फिलहाल, इस मामले में कोई अन्य सक्षम प्राधिकरण आगे निर्णय ले सकता है।
गुझर समुदाय और सामाजिक-राजनीतिक प्रतिक्रिया
देश के विभिन्न हिस्सों में गुझर समुदाय के संगठन इस फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं। इस विषय पर भविष्य में और भी सामाजिक और राजनीतिक चर्चाएं हो सकती हैं।
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