नई दिल्ली में एक विशेष संगोष्ठी में यह बात सामने आई कि प्राचीन भारत ने आकाशगंगाओं के रहस्यों को सुलझाने में अभूतपूर्व योगदान दिया है। आधुनिक खगोल विज्ञान के कई सिद्धांतों की जड़ें वैदिक और पौराणिक साहित्य में मिलती हैं, जो कि उस समय के वैज्ञानिक और दार्शनिक ज्ञान को दर्शाती हैं।
प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान के प्रमुख योगदान
- सूर्य और चंद्रमा के मार्ग की गणना: प्राचीन ग्रंथों में सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों की गति की विस्तृत गणना पाई जाती है, जो आकाशगंगाओं की समझ में मदद करती है।
- नक्षत्र विज्ञान: नक्षत्रों की स्थापना और उनकी स्थिति से आकाशीय पिंडों के अध्ययन की शुरुआत भी प्राचीन भारत से ही मानी जाती है।
- कालचक्र और ब्रह्मांडीय चक्र: संस्कृत साहित्य में ब्रह्मांडीय समय मापन की अत्यंत सूक्ष्म अवधारणाएं वर्णित हैं।
आधुनिक विज्ञान में प्राचीन ज्ञान का महत्व
आधुनिकीकरण के साथ-साथ जब खगोल विज्ञान ने गति पकड़ी, तब प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान के विचारों को पुनः महत्व मिला। कई अंतरिक्ष वैज्ञानिक और विद्वान इस ओर ध्यान देने लगे कि प्राचीन स्रोतों से प्राप्त ज्ञान आज भी कई खगोलीय शोधों में सहायक सिद्ध हो सकता है।
संगोष्ठी के मुख्य बिंदु
- प्राचीन भारतीय ग्रंथों में वर्णित आकाशगंगाओं के सिद्धांतों का वर्तमान खगोल विज्ञान से सामंजस्य।
- वैदिक काल में खगोलीय उपकरणों और तकनीकों का विकास।
- प्राचीन खगोलविदों के योगदान को विश्व समुदाय में पहचान दिलाने के प्रयास।
इस प्रकार, यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारत की खगोल विज्ञान की धरोहर न केवल ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह वर्तमान और भविष्य के खगोल वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए भी प्रेरणा स्रोत है।
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