27 मई 1964 की सुबह, भारत के पहले प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू के अंतिम पलों में देश एक गहरे सन्नाटे में डूब गया था। इस दिन नेहरू को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। उन्होंने अपना स्वास्थ्य अचानक बिगड़ते देखा, जिसके कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
सुबह के समय, नेहरू ने परिवार के सदस्यों और कुछ विश्वसनीय अधिकारियों से मुलाकात की, जहां उन्होंने देश के भविष्य के लिए अपने विचार साझा किए। वह अपने स्वास्थ्य के बावजूद देश की वर्तमान स्थिति पर चर्चा करने के लिए सजग थे।
उनके साथ मौजूद चिकित्सकों की टीम लगातार उनकी निगरानी कर रही थी, लेकिन उनकी हालत तेजी से नाजुक हो रही थी। चिकित्सकों ने परिवार को स्थिति की गंभीरता से अवगत कराया।
इस दिन के दौरान, नेहरू ने अपनी अंतिम इच्छाओं और राष्ट्रीय एकता के संदेश पर जोर दिया। उन्होंने अपने विश्वास और उम्मीदों को परिवार और नेताओं के साथ बांटा ताकि वे भारत को एक मजबूत लोकतंत्र के रूप में आगे ले जा सकें।
अंततः, 27 मई की शाम को नेहरू ने निधन कर दिया, और इस घटना ने पूरे देश को शोक में डुबो दिया। इस दिन के अंतिम पलों ने इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में अपनी छाप छोड़ी।
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