भारतीय फिल्म उद्योग में गैर-हिंदी भाषी राज्यों के प्रतिनिधित्व को लेकर चर्चा एक बार फिर गरमाई है। हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘पैरम सुंदरी’ ने इस संवेदनशील मुद्दे को फिर से उजागर किया है। यह विषय उस समय महत्त्वपूर्ण हो जाता है जब भारतीय फिल्म जगत को देश की विविधता दर्शानी की आवश्यकता तीव्र हो रही है।
घटना क्या है?
पैरम सुंदरी फिल्म की रिलीज ने हिंदी भाषी फिल्मों में गैर-हिंदी भाषी राज्यों के कलाकारों, भाषा, और संस्कृति के समावेशन पर सवाल उठाए। यह फिल्म दक्षिण भारतीय भाषा से संबंधित है, और इसकी चर्चा ने भारतीय सिनेमा में भाषा और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व का मुद्दा दोबारा जीवंत किया है।
कौन-कौन जुड़े?
इस बहस में जुड़े प्रमुख पक्ष में शामिल हैं:
- फिल्म निर्माता
- अभिनेता
- दर्शक समूह
- फिल्म समीक्षक
- सांस्कृतिक संस्थान
- भाषा और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को लेकर विभिन्न सामाजिक संगठन
- पत्रकार
ये सभी इस विषय पर अपनी राय रख रहे हैं।
आधिकारिक बयान/दस्तावेज़
फिल्म प्रमोटर्स ने बताया कि ‘पैरम सुंदरी’ का उद्देश्य भारतीय सिनेमा की बहुभाषी पहचान को बढ़ावा देना है। इसके विपरीत, हिंदी फिल्म उद्योग के एक वर्ग ने यह अभिव्यक्ति की कि फिल्म उद्योग को देश की बहुलता को समाहित करने के लिए और अधिक प्रयास करना होगा, खासकर गैर-हिंदी भाषी राज्यों के कलाकारों एवं विषयों पर।
पुष्टि-शुदा आँकड़े
- भारतीय सिनेमा का लगभग 70 प्रतिशत उत्पादन हिंदी भाषा में होता है।
- अन्य भाषाओं का प्रतिनिधित्व मात्र 30 प्रतिशत है।
- गैर-हिंदी भाषी राज्यों के कलाकारों की हिस्सेदारी हिंदी फिल्मों में करीब 15 प्रतिशत बताई गई है।
तत्काल प्रभाव
इस बहस के चलते दर्शकों में क्षेत्रीय फिल्मों के प्रति जागरूकता बढ़ी है, और फिल्म उद्योग में बहुभाषिक सामग्री की मांग में वृद्धि हुई है। साथ ही, बाजार में क्षेत्रीय फिल्मों की हिस्सेदारी में पिछले दो वर्षों में 25 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।
प्रतिक्रियाएँ
- सरकार के सांस्कृतिक विभाग ने कहा है कि वह भारतीय सिनेमा की विविधता को बढ़ावा देने के लिए नई योजनाओं पर विचार कर रहा है।
- फिल्म उद्योग के कुछ बड़े नामों ने भाषाई विविधता को स्वीकारते हुए अधिक समावेशी फिल्म निर्माण की अपील की है।
- विशेषज्ञों ने कहा कि यह बहस भारतीय सिनेमा के दीर्घकालिक विकास के लिए आवश्यक है।
- जनता का मानना है कि फिल्म उद्योग को सभी राज्यों और भाषाओं की संस्कृति को प्रमुखता से प्रदर्शित करना चाहिए।
आगे क्या?
सरकार और फिल्म नियामक संस्थान आगामी महीनों में भाषाई विविधता के समर्थन में नई नीति तैयार करने की योजना बना रहे हैं। साथ ही, कई गैर-हिंदी भाषी सिनेमा आयोजक आगामी फिल्मोत्सवों में अपनी फिल्मों को और अधिक व्यापक स्तर पर प्रदर्शित करने पर ध्यान दे रहे हैं।
भारतीय फिल्म उद्योग में भाषा एवं क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व की यह बहस आगे भी जारी रहने वाली है, जिससे समावेशी सिनेमा के मार्ग प्रशस्त होंगे। ताज़ा अपडेट्स के लिए पढ़ते रहिए Questiqa Bharat।
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