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भारत में एफपीआई निवेश (Foreign Portfolio Investment) में बदलाव होना बाजार और सूचकांकों पर काफी प्रभाव डाल सकता है। एफपीआई निवेश विदेशी निवेशकों द्वारा स्टॉक मार्केट में की जाने वाली पूंजी निवेश की प्रक्रिया है। जब एफपीआई निवेश में वृद्धि होती है, तो यह बाजार में तरलता बढ़ाता है और शेयरों की मांग को बढ़ाता है, जिससे सूचकांक सकारात्मक प्रभाव में आते हैं। वहीं, एफपीआई निवेश में गिरावट से बाजार में अविश्वास पैदा हो सकता है और सूचकांकों में गिरावट आ सकती है।
एफपीआई निवेश में बदलाव का मुख्य कारण हो सकते हैं:
- वैश्विक आर्थिक स्थिति में बदलाव
- भारत सरकार की नीतिगत निर्णय
- मुद्रास्फीति और ब्याज दरों में परिवर्तन
- भारत के आर्थिक विकास के संकेत
एफपीआई निवेश में वृद्धि होने पर, भारतीय शेयर बाजार में तेजी देखने को मिलती है जिससे सेंसेक्स और निफ्टी जैसे प्रमुख सूचकांक ऊपर जाते हैं। इसके विपरीत, जब विदेशी निवेशक अपना निवेश निकालते हैं, तो यह सूचकांकों में गिरावट की वजह बन सकता है।
इसलिए, निवेशकों और विश्लेषकों को एफपीआई निवेश के रुझान पर नजर रखना जरूरी है ताकि बाजार के संभावित उतार-चढ़ाव को बेहतर तरीके से समझा जा सके।
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