मेटा प्लैटफॉर्म्स इंक. ने भारतीय समय अनुसार जुलाई 2025 में हिंदी, स्पेनिश, पुर्तगाली और इंडोनेशियाई भाषाओं में AI चैटबॉट विकास के लिए ठेकेदारों की भर्ती शुरू की है। यह पहल कंपनी के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर बहुभाषी उपयोगकर्ताओं के लिए संवाद अनुभव बेहतर बनाने के उद्देश्य से की गई है।
घटना क्या है?
मेटा ने जुलाई 2025 के अंत में हिंदी भाषी क्षेत्र के ठेकेदारों को अपने AI चैटबॉट विकास प्रोजेक्ट में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है। यह उद्देश्य इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, और मैसेंजर पर स्थानीय और सांस्कृतिक संदर्भों के अनुसार प्रभावी चैटबॉट तैयार करना है।
कौन-कौन जुड़े?
इस परियोजना का प्रबंधन मेटा की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग टीम कर रही है। इसमें भारतीय तकनीकी और भाषा विशेषज्ञों के साथ-साथ स्थानीय भाषा विशेषज्ञ और सांस्कृतिक सलाहकार भी सक्रिय रूप से योगदान दे रहे हैं। यह एक अशासकीय प्रयास है जिसमें कोई सरकारी हस्तक्षेप नहीं है।
आधिकारिक बयान और दस्तावेज़
मेटा की वेबसाइट पर जारी प्रेस वक्तव्य में कहा गया है कि कंपनी अपने उत्पादों में स्थानीयकृत अनुभव प्रदान करना चाहती है। इसके तहत AI चैटबॉट्स की क्षमता बढ़ाने के लिए हिंदी, स्पेनिश, पुर्तगाली और इंडोनेशियाई भाषाओं में विकास पर जोर दिया जाएगा। ठेकेदारों को तीसरे क्वार्टर 2025 तक परियोजना पूरी करनी होगी।
पुष्ट आंकड़े
- भारत में इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और मैसेंजर के सक्रिय उपयोगकर्ता लगभग 1 अरब हैं।
- हिंदी भाषी उपयोगकर्ताओं की हिस्सेदारी लगभग 30% है।
- इस प्रोजेक्ट के लिए मेटा ने करीब 50 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया है।
तत्काल प्रभाव
ठेकेदारों की भर्ती के बाद हिंदी AI चैटबॉट्स की गुणवत्ता और प्रासंगिकता में वृद्धि होगी, जिससे उपयोगकर्ताओं को बेहतर संचार और सहायता मिलेगी। यह सोशल मीडिया अनुभव को अधिक सहज और उपयोगकर्ता केंद्रित बनाएगा, साथ ही स्थानीय व्यापार और ग्राहक सेवा क्षेत्र को भी लाभ पहुंचाएगा।
प्रतिक्रियाएँ
- भारतीय तकनीकी विशेषज्ञों ने इस पहल का स्वागत किया है।
- भाषा शिक्षाविदों ने स्थानीय भाषा की सांस्कृतिक समझ के महत्व पर जोर दिया है।
- गोपनीयता अधिकार संगठनों ने डेटा सुरक्षा एवं उपयोगकर्ता गोपनीयता के लिए सतर्क रहने की सलाह दी है।
आगे क्या?
मेटा आगामी महीनों में इस परियोजना का प्रोटोटाइप लॉन्च करेगी, जिसके बाद व्यापक परीक्षण कर इसे सभी प्लेटफॉर्मों पर लागू किया जाएगा। उपयोगकर्ता और विशेषज्ञों से प्राप्त फीडबैक के अनुसार इसमें निरंतर सुधार किया जाएगा।
यह पहल भारतीय डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में स्थानीय भाषाओं के समावेश की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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