नई दिल्ली, 21 जून 2024: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पर्यावरण संरक्षण से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुना कर पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक नई मिसाल कायम की है। इस फैसले से राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकार दोनों के लिए पर्यावरण संरक्षण की दिशा में स्पष्ट गाइडलाइन निर्धारित हुई हैं।
घटना क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने आयोगित किया है कि पर्यावरण अनुमति (Environmental Clearance) प्रक्रिया उद्योगों और विकास परियोजनाओं के लिए और अधिक सख्त की जाए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विकास कार्य पर्यावरण की सुरक्षा के बिना संभव नहीं हैं और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) रिपोर्ट को स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा समीक्षा के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
घटनाक्रम की समयरेखा
- 15 मार्च 2024: पर्यावरण संरक्षण संगठन ने अदालत में याचिका दायर की।
- 10 मई 2024: मामले की सुनवाई शुरू हुई।
- 21 जून 2024: सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित किया।
कौन-कौन जुड़े?
इस मामले में उत्तराखंड, महाराष्ट्र जैसे राज्य सरकारें, केंद्र सरकार का पर्यावरण मंत्रालय, विभिन्न पर्यावरणीय संगठन और उद्योग प्रतिनिधि शामिल थे। अदालत ने सभी पक्षों की दलीलों को सुना और पर्यावरण मंत्रालय को रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए।
आधिकारिक बयान और दस्तावेज़
सुप्रीम कोर्ट के आदेश में यह स्पष्ट किया गया है कि पर्यावरण की सुरक्षा सर्वोपरि है। पर्यावरण मंत्री ने प्रेस रिलीज़ में कहा कि यह फैसला भारत के सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप है। मंत्रालय ने आदेश का अनुपालन करने हेतु एक विशेषज्ञ समिति गठित की है।
पुष्टि-शुदा आँकड़े
पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पिछली वित्तीय वर्ष में औद्योगिक गतिविधियों में 12 प्रतिशत वृद्धि के बावजूद पर्यावरणीय मानकों का उल्लंघन 8 प्रतिशत घटा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह मानदंड और सख्त हो जाएगा।
तत्काल प्रभाव
यह फैसला पर्यावरण संरक्षण की नीतियों को और मजबूत करेगा। उद्योगों को पर्यावरणीय नियमों का कठोरता से पालन करना होगा, जिससे वायु और जल प्रदूषण में कमी आने की उम्मीद है। नागरिकों के लिए साफ-सुथरे पर्यावरण का माहौल बेहतर होगा और बाजारों में पर्यावरण-संवेदनशील उत्पादों की मांग बढ़ेगी।
प्रतिक्रियाएँ
- सरकार: फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह भारत को वैश्विक पर्यावरण संरक्षण प्रयासों में अग्रणी बनाएगा।
- विपक्ष: सही दिशा में कदम माना, लेकिन प्रभावी क्रियान्वयन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता बताई।
- पर्यावरण विशेषज्ञ: न्यायपालिका की संवैधानिक जागरूकता की मिसाल बताया।
- उद्योग निकाय: स्पष्ट निर्देश और सहयोग की समय पर आवश्यकता पर ज़ोर दिया ताकि विकास प्रभावित न हो।
आगे क्या?
पर्यावरण मंत्रालय ने अगले तीन महीनों में हालात पर निगरानी रखने और आवश्यक नीतिगत संशोधन करने का प्रस्ताव रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने आगामी दो माह में मामले की पुनः सुनवाई तय की है। साथ ही सभी राज्य सरकारों को पर्यावरणीय मानकों को लागू करने के लिए निर्देशित किया गया है।
यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका के पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पण और संवैधानिक जिम्मेदारी को दर्शाता है। इसके अनुपालन से भारत के पर्यावरण में स्पष्ट सुधार आने की उम्मीद है।
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