नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम मामले में स्पष्ट किया कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां दुनिया भर से आए शरणार्थियों को शरण दी जाए। यह टिप्पणी श्रीलंका से आए एक तमिल शरणार्थी की हिरासत मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता ने की। उन्होंने कहा कि भारत में बसने का मौलिक अधिकार केवल नागरिकों को ही प्राप्त है और देश पहले ही 140 करोड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहा है।
इस मामले के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
- श्रीलंका के एक नागरिक को UAPA के तहत सजा सुनाई गई थी।
- मद्रास हाई कोर्ट ने उसे सजा पूरी होने के बाद भारत छोड़ने का आदेश दिया।
- याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह अपने देश में जान के खतरे के कारण भारत आया है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में किसी दूसरे देश में शरण लेना बेहतर होगा।
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से शरणार्थियों के अधिकारों और भारत की सीमाओं को लेकर महत्वपूर्ण संकेत मिलते हैं। अदालत ने बताया कि:
- देश की सुरक्षा सर्वोपरि है।
- नागरिकों के अधिकारों को प्राथमिकता दी जाएगी।
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