विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने संसद की स्थायी समिति को स्पष्ट किया कि भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया युद्धविराम पूर्णतः द्विपक्षीय निर्णय था और इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका की कोई भूमिका या जानकारी शामिल नहीं थी। उन्होंने यह भी बताया कि दोनों देशों के मिलिट्री ऑपरेशंस के डायरेक्टर्स जनरल ऑफ़ मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMO) के बीच हुई बातचीत के आधार पर 10 मई, 2025 को संघर्ष विराम पर सहमति बनी| पाकिस्तानी पक्ष ने न तो कोई परमाणु संकेत भेजा और न ही किसी तीसरे पक्ष को वार्ता में शामिल किया गया। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को पहली स्ट्राइक के बाद ही जानकारी दी गई और इसमें व्यापार या अन्य किसी प्रलोभन का विषय नहीं था। राज्य सरकार ने यह भी साफ किया कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा दावा की गई मध्यस्थता का कोई आधिकारिक आधार नहीं था।
पृष्ठभूमि और इतिहासिक संदर्भ
1948 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रस्तावना (UNSC Res 47) ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष को मध्यस्थता के तहत प्रभावित किया, जिसमें दोनों पक्षों से सैनिकों की वापसी और जनमत संग्रह की प्रक्रिया सुझाई गई थी। उस समय की कमीशन की आवश्यकताओं के बावजूद, सीमावर्ती झड़पें जारी रहीं और स्थायी शांति का मार्ग कठिन साबित हुआ। पिछले दशक में भारत और पाकिस्तान सीमा पर कई सैन्य गतिरोध और आतंकवादी घटनाएँ हुईं, जिनमें अप्रैल 2025 के पठानकोट और पहलगाम हमलों समेत आईएसआई संग जुड़ी कार्रवाइयाँ प्रमुख रहीं। इसके जवाब में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर नामक रणनीतिक पहल चलाई, जिसका उद्देश्य आतंक समूहों के ठिकानों को निशाना बनाना था
तर्क-वितर्क और तथ्यगत विश्लेषण
विदेश सचिव ने सदन के पैनल को बताया कि युद्धविराम का आह्वान पाकिस्तान की ओर से हुआ था और भारत ने DGMO-स्तरीय बातचीत के उपरांत इसे स्वीकार किया। ट्रम्प प्रशासन या अन्य किसी देश ने इस प्रक्रिया में मध्यस्थता नहीं की, जैसा कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति के दावों से प्रतीत हुआ। कई सांसदों ने प्रश्न उठाए कि भारत ने ट्रम्प के बयानों का औपचारिक रूप से खंडन क्यों नहीं किया, तब मिश्री ने पारदर्शिता बनाए रखने के लिए यह तथ्य प्रस्तुत किया
द्विपक्षीय निर्णय की पुष्टि
विदेश सचिव ने सदन के पैनल को बताया कि युद्धविराम का आह्वान पाकिस्तान की ओर से हुआ था और भारत ने DGMO-स्तरीय बातचीत के उपरांत इसे स्वीकार किया। ट्रम्प प्रशासन या अन्य किसी देश ने इस प्रक्रिया में मध्यस्थता नहीं की, जैसा कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति के दावों से प्रतीत हुआ। कई सांसदों ने प्रश्न उठाए कि भारत ने ट्रम्प के बयानों का औपचारिक रूप से खंडन क्यों नहीं किया, तब मिश्री ने पारदर्शिता बनाए रखने के लिए यह तथ्य प्रस्तुत किया
परमाणु संकेतों का खंडन
पैनल को यह भी सूचित किया गया कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष पूरी तरह पारंपरिक मोर्चे पर था और पाकिस्तान ने कोई “न्यूक्लियर सिग्नलिंग” नहीं की। इस दावे को प्रेस के माध्यम से बताने के बजाय पैनल में पेश किया गया, जिससे यह संदेश गया कि दोनो राष्ट्र परमाणु हथियार प्रयोग के गंभीर परिणामों से वाकिफ हैं और संघर्ष को पारंपरिक सीमा तक ही सीमित रखना चाहते हैं
व्यापार या प्रलोभन का पक्ष निरर्थक
मिश्री ने यह भी रेखांकित किया कि युद्धविराम के पीछे कोई व्यापारिक सौदेबाजी या मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत नहीं थी। यह स्पष्ट करता है कि विदेश नीति निर्णयों में राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक हित इसमें बाधक नहीं बने तीसरे पक्ष की भूमिका पर प्रश्न पिछले वर्षों में चीन और तुर्की जैसे देश भी दक्षिण एशियाई सुरक्षा पर सक्रिय रहे, लेकिन संसद में कहा गया कि उन्होंने युद्धविराम में कोई भूमिका नहीं निभाई। विशेषकर तुर्की का कभी पारंपरिक सहयोगी न होने का जिक्र कर रणनीतिक स्वायत्तता पर बल दिया गया
क्षेत्रीय स्थिरता पर असर
यह द्विपक्षीय युद्धविराम दोनों देशों को तनाव न्यूनीकरण का मौका देता है, जिससे सीमावर्ती क्षेत्रों में नागरिकों की सुरक्षा बढ़ सकती है। शांति वार्ता के लिए न्यूनतम स्तर पर चैनल खुलना भविष्य में और गहन वार्ताओं की आधारशिला रख सकता है
समग्र रूप से, संसद समिति को दी गई जानकारी ने स्पष्ट कर दिया कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम निर्णय पूरी तरह से द्विपक्षीय था और किसी बाहरी ताकत ने इसमें मध्यस्थता, कोई परमाणु संकेत जारी करना या व्यापारिक प्रलोभन नहीं दिए
ज़्यादा कहानियां
केरल में बारिश से जनजीवन प्रभावित, पांच जिलों में रेड अलर्ट घोषित
दिल्ली में भारतीय वैज्ञानिकों ने क्वांटम संचार में की क्रांतिकारी सफलता
कोलकाता में तकनीकी गड़बड़ी के कारण मुंबई जाने वाली एयर इंडिया फ्लाइट से उतारे गए यात्री