नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्या कांट ने भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को सुधारक बताया है, न कि केवल दंडात्मक। उन्होंने कहा कि हमारा कानून व्यवस्था अपराधियों को सजा देने के बजाय उन्हें सुधारने पर जोर देती है। जस्टिस सूर्या कांट ने यह बात एक कानूनी सेमिनार में कही।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि समाज में अक्सर यह धारणा होती है कि नशे की लत केवल एक बुरी आदत है, लेकिन इससे जुड़ी समस्या वास्तव में एक जटिल स्थिति है जो व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करती है। इसलिए, न्यायपालिका का ध्यान न केवल सजा देने पर बल्कि पुनर्स्थापना और सुधारात्मक उपायों पर होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के इस दृष्टिकोण से यह स्पष्ट होता है कि भारत का आपराधिक न्याय तंत्र अपराधियों के पुनर्वास को प्राथमिकता देता है, जिससे अपराध की पुनरावृत्ति को कम किया जा सके। यह प्रणाली अपराधियों को सामाजिक रूप से पुनः योगदान देने में मदद करती है।
भारतीय समाज के लिए यह सोच न्याय व्यवस्था को और अधिक मानवतावादी और उन्नत बनाती है। न्यायपालिका के इस सकारात्मक दृष्टिकोण से देश में कानून-व्यवस्था को बेहतर बनाने की उम्मीद बढ़ी है।
सारांश:
- भारत की न्याय प्रणाली सुधारात्मक है, दंडात्मक नहीं।
- नशे की लत एक जटिल समस्या है जिसे समझना आवश्यक है।
- न्यायपालिका पुनर्स्थापना और सुधार पर केंद्रित है।
- यह दृष्टिकोण अपराध पुनरावृत्ति को कम करने में मदद करता है।
- यह मानवतावादी और उन्नत न्याय व्यवस्था की ओर एक कदम है।
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