अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर सुर्खियाँ बटोरी हैं, और इस बार भारत के साथ संभावित व्यापार समझौते को लेकर। 26 जून को वॉशिंगटन में आयोजित “One Big Beautiful Bill” नामक कार्यक्रम में उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि “हमने कल ही चीन के साथ एक बड़ा सौदा साइन किया है। अगला नंबर भारत का हो सकता है—एक बहुत ही बड़ा सौदा। हम भारत को खोलने जा रहे हैं।” ट्रम्प के इस बयान ने न केवल अंतरराष्ट्रीय मीडिया में हलचल मचा दी, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी एक संभावित बदलाव की घंटी बजा दी।
डोनाल्ड ट्रम्प का यह बयान कोई सामान्य राजनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि अमेरिका और भारत के बीच पिछले कुछ महीनों से चल रही व्यापार वार्ताओं के संदर्भ में एक बड़ा संकेत माना जा रहा है। गौरतलब है कि दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते की बातचीत लंबे समय से जारी है, लेकिन कई मुद्दों पर मतभेद बने हुए हैं—जिनमें टैरिफ, कृषि उत्पाद, और तकनीकी हस्तांतरण शामिल हैं।
भारत सरकार ने इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कोई भी व्यापार समझौता तभी किया जाएगा जब वह निष्पक्ष, संतुलित और दोनों देशों के लिए लाभदायक हो। भारत ने अमेरिका से यह अपेक्षा की है कि वह व्यापार वार्ता में पारदर्शिता रखे और भारतीय कृषि क्षेत्र, डेयरी उत्पादों और लघु उद्योगों को पर्याप्त सुरक्षा दे। दरअसल, भारत ने हाल ही में बादाम, पिस्ता, और अखरोट जैसे अमेरिकी कृषि उत्पादों पर टैरिफ में कटौती करने की पेशकश की थी, लेकिन इसके साथ यह भी स्पष्ट किया कि वह घरेलू किसानों के हितों से समझौता नहीं करेगा।
अमेरिका, विशेष रूप से ट्रम्प प्रशासन, भारत के कुछ टैरिफ को “अत्यधिक” मानता है। जैसे मोटरसाइकिल, वाइन, और मेडिकल उपकरण पर भारत में काफी ऊँचे टैक्स हैं, जिनको लेकर ट्रम्प पहले भी नाराज़गी जता चुके हैं। ट्रम्प ने कहा था कि “भारत दुनिया के सबसे ऊँचे टैरिफ वाले देशों में से एक है और इसे बदलना होगा।”
वहीं दूसरी ओर, भारत ने अपने बाजार को धीरे-धीरे खोलने की बात कही है, लेकिन इसके लिए अमेरिका से भरोसा मांगा है कि किसी भी समझौते के बाद एकतरफा दंडात्मक टैरिफ या व्यापारिक अवरोध नहीं लगाए जाएंगे। भारत ने अमेरिका को यह भी सुझाव दिया है कि व्यापार समझौते को व्यापक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से देखा जाए, न कि सिर्फ तात्कालिक लाभ के लिए।
हालांकि, बातचीत का माहौल सकारात्मक है, लेकिन ट्रम्प का यह बयान ऐसे समय आया है जब जुलाई की शुरुआत में एक अहम डेडलाइन सामने है। अमेरिका की ओर से संकेत दिए गए थे कि अगर 9 जुलाई तक कोई समझौता नहीं हुआ तो कुछ भारतीय उत्पादों पर 26% टैरिफ लगाया जा सकता है। यह चेतावनी भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है, और यही कारण है कि भारत के वाणिज्य मंत्रालय ने हाल ही में अमेरिका के साथ एक उच्च स्तरीय बैठक की योजना बनाई है।
इस व्यापार समझौते का राजनीतिक महत्व भी कम नहीं है। ट्रम्प अगले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में फिर से उम्मीदवार हो सकते हैं, और भारत के साथ व्यापारिक सफलता उन्हें चुनावी मंच पर एक अतिरिक्त उपलब्धि के रूप में पेश करने में मदद कर सकती है। वहीं भारत के लिए यह समझौता एक रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने का अवसर हो सकता है, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी गति से आगे बढ़ रही है।
भारत–अमेरिका व्यापार रिश्ते हमेशा से महत्वपूर्ण रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इनमें कई बार उतार-चढ़ाव भी आए हैं। कभी H-1B वीजा विवाद, तो कभी डेटा सुरक्षा के मुद्दे। लेकिन अब जब दोनों देश वैश्विक राजनीति में अपनी स्थिति मज़बूत करना चाहते हैं, तो व्यापार समझौता एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।
अंततः, ट्रम्प का “बहुत बड़ा व्यापार समझौता” वाला बयान केवल शब्द नहीं, बल्कि एक रणनीतिक इशारा है। अब देखना यह है कि क्या यह इशारा कागज़ पर एक ठोस समझौते का रूप ले पाता है, या फिर यह भी अतीत के उन कई वादों की तरह महज़ एक चुनावी बयान बनकर रह जाएगा। भारत के लिए यह समय है सतर्क रहने का, समझदारी से निर्णय लेने का, और यह सुनिश्चित करने का कि वह किसी भी व्यापार समझौते में अपनी संप्रभुता और घरेलू हितों से समझौता न करे।
भारत और अमेरिका के रिश्तों की इस नई दिशा पर नज़र बनी रहेगी। हम आपको इस व्यापार वार्ता की हर अपडेट से रूबरू कराते रहेंगे।
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