June 16, 2025

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JD वॅन्स ने समझा, भारत ने नैरेटिव जीता

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भारत-अमेरिका संबंधों की बदलती हवा और कूटनीतिक समवाद के नए पृष्ठों में शशि थरूर ने अमेरिका की धरा पर एक ऐसा बयान दिया जिसने न केवल भारतीय विदेश नीति की स्पष्टता को दर्शाया, बल्कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे संवेदनशील विषय को वैश्विक मंच पर मजबूती से रखने का दावा भी किया।

“JD वॅन्स ने समझा, अमेरिका ने सुना — और भारत ने नैरेटिव की लड़ाई जीत ली,” ये शब्द थे शशि थरूर के, जो इस समय अमेरिका दौरे पर हैं और भारतीय समुदाय से संवाद कर रहे हैं। उनकी टिप्पणी खासतौर पर अमेरिकी सीनेटर JD वॅन्स की उस टिप्पणी के जवाब में आई जिसमें उन्होंने भारत की विदेश नीति और ऑपरेशन सिंदूर की आलोचना की थी।

तो आखिर क्या है ‘ऑपरेशन सिंदूर’?

‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत की खुफिया एजेंसियों द्वारा हाल ही में किए गए एक गुप्त अभियान से जुड़ा हुआ था, जिसमें भारत के सुरक्षा हितों को खतरा पहुंचाने वाले तत्वों को विदेश में सूचीबद्ध कर कूटनीतिक दबाव के माध्यम से निष्क्रिय किया गया। इसमें कुछ संदिग्ध भारतीय नागरिक भी शामिल थे, जो अलगाववादी विचारधारा से प्रभावित थे और विदेशी ज़मीन पर भारत के खिलाफ गतिविधियों में शामिल थे।

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विश्व प्रतिक्रिया इस ऑपरेशन के लिए मिली-जुली रही—कुछ पश्चिमी देशों ने इसको “एक्सट्रा-ज्यूडिशियल” कार्रवाई माना, जबकि भारत ने उसे राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल दिखाते हुए पूरी तरह जायज़ ठहराया।

JD वॅन्स की आलोचना और थरूर का जवाब

अमेरिकी सीनेटर JD वॅन्स ने हाल कुछ दिनों पहले एक बयान में भारत का आरोप लगाया कि वह विदेशी पर अति-सक्रिय हो गया है और इससे “लोकतांत्रिक मूल्यों” को खतरा हो सकता है। इसके बाद ही शशि थरूर ने अपने दौरे के समय इस मुद्दे का उल्लेख करते हुए कहा:

“JD वॅन्स ने शुरुआती स्तर पर जो कहा था, वह भारत की वास्तविक स्थिति को पूरी तरह नहीं पेश करता था। लेकिन हमने उन्हें तथ्यों से अवगत कराया। बातचीत के दौरान उन्हें समझ आया कि भारत आतंकवाद से निपटने के लिए कोई भी आधा कदम नहीं उठा सकता।”

थरूर ने यह भी बताया कि भारतीय दूतावास और कूटनीतिज्ञों ने मिलकर यह समझाने में सफलता पाई कि भारत का उद्देश्य किसी देश की संप्रभुता का उल्लंघन नहीं, बल्कि अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

भारत का नैरेटिव अब सिर्फ सुना नहीं जाता, स्वीकार भी किया जाता है

शशि थरूर ने अपने भाषण में एक महत्वपूर्ण बात कही—”पहले भारत दुनिया में सिर्फ सुना जाता था, अब उसे समझा भी जा रहा है।”
उनके अनुसार भारत ने अब अपनी विदेश नीति में सिर्फ जवाब नहीं, “प्रतिक्रिया से पहले भूमिका” भी तय करनी शुरू कर दी है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अमेरिकी थिंक टैंक्स और नीति-निर्माताओं में भारत की स्थिति को लेकर अब ज्यादा जागरूकता है।

भारतीय प्रवासी समुदाय का समर्थन

वॉशिंगटन में आयोजित एक संवाद सत्र के दौरान बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग भी मौजूद थे। उन्होंने थरूर की बातों का समर्थन किया और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकता का हिस्सा बताया।

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एक छात्रा ने सवाल किया कि क्या भारत का यह रुख अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत टिक पाएगा? इस पर थरूर ने जवाब दिया:

“जो राष्ट्र अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देगा, वह दूसरों की संप्रभुता की रक्षा भी नहीं कर पाएगा। भारत वही कर रहा है जो ज़रूरी है — जिम्मेदारी के साथ, रणनीति के तहत।”

नैरेटिव वॉर: भारत बनाम आलोचक

वहीं जहां भारत अपने ऑपरेशन को “रणनीतिक आवश्यकता” आरोपित कर रहा है, वहीं कुछ अमेरिकी सांसद और यूरोपीय मीडिया इसे “नए भारत की आक्रामक विदेश नीति” उल्लेख कर रहे हैं। लेकिन शशि थरूर जैसे कूटनीतिक वक्ताओं की भूमिका इस ‘नैरेटिव वॉर’ में एक ढाल जैसी दिख रही है।

भारत अब सिर्फ एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि एक ठोस कूटनीतिक शक्ति के रूप में उभर रहा है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और उसके इर्द-गिर्द खड़े हुए विवादों में भारत की स्पष्ट प्रतिक्रिया और नेताओं की कूटनीतिक कुशलता यह दिखा रही है कि अब भारत की बात “बोल कर नहीं, समझा कर” मानी जा रही है।

और जब अमेरिका जैसे देशों के सीनेटरों को भी भारत का पक्ष ‘समझ में आने’ लगे—तो यह किसी ऑपरेशन से कहीं ज़्यादा एक रणनीतिक जीत होती है।

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