भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से तनावपूर्ण संबंध रहे हैं। खासकर हाल के वर्षों में, भारत ने पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर आतंकवाद समर्थक देश के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है। भारत का मुख्य उद्देश्य था कि दुनिया पाकिस्तान को अलग-थलग कर दे, जिससे न सिर्फ उसकी छवि खराब हो बल्कि उस पर आर्थिक और कूटनीतिक दबाव भी बढ़े।
22 अप्रैल 2025 को पायलागाम में हुए आतंकी हमले में 26 भारतीय नागरिकों की हत्या के बाद भारत ने अपने प्रयास और तेज कर दिए। भारत ने पाकिस्तान के साथ कई द्विपक्षीय संबंधों को निलंबित किया। वाघा सीमा बंद कर दी गई, पाकिस्तानी वीज़ा रद्द किए गए और भारत ने सिंधु जल संधि की समीक्षा की घोषणा भी की। इसके अलावा, भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम से सीमापार सैन्य कार्रवाई कर आतंकियों के ठिकानों को निशाना बनाया।
इस कार्रवाई के बाद भारत ने एक कूटनीतिक अभियान शुरू किया। विदेश मंत्री और वरिष्ठ अधिकारियों ने अमेरिका, यूरोप, आसियान और खाड़ी देशों का दौरा किया और पाकिस्तान को आतंक का गढ़ बताते हुए दुनिया से समर्थन मांगा। विदेश सचिव एस जयशंकर ने ब्रुसेल्स में यहां तक कहा कि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में छिपा था, यह तथ्य इस बात का प्रमाण है कि पाकिस्तान आतंकियों को संरक्षण देता है।
हालांकि भारत को कुछ हद तक समर्थन जरूर मिला। कुछ देशों ने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार को स्वीकार किया और आतंकवाद के खिलाफ उसकी कार्रवाई को सही ठहराया। लेकिन पाकिस्तान को अलग-थलग करने की उम्मीदों पर जल्द ही पानी फिरता दिखाई देने लगा।
पाकिस्तान ने इस दौरान अपना पक्ष सधे हुए तरीके से रखा। उसने दावा किया कि वह आतंकवाद के खिलाफ है और भारत से बातचीत के लिए तैयार है। साथ ही उसने चीन, तुर्की और खाड़ी के कुछ देशों से समर्थन भी हासिल किया। अमेरिका ने भी पाकिस्तान को एक ‘महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार’ बताया, जिससे भारत की उम्मीदों को झटका लगा।
अमेरिका के शीर्ष जनरल ने सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान को ‘फेनोमिनल पार्टनर’ यानी अद्भुत साझेदार कहा। इससे भारत में राजनीतिक विवाद शुरू हो गया। विपक्षी दल कांग्रेस ने सवाल उठाया कि क्या यह भारत की कूटनीतिक विफलता नहीं है?
दूसरी ओर, पाकिस्तान ने अपना रक्षा बजट 20% बढ़ा दिया, भले ही उसकी अर्थव्यवस्था कमजोर है। यह कदम भारत को सैन्य रूप से जवाब देने के संकेत के रूप में देखा गया। वहीं, भारत के प्रयासों के बावजूद आसियान, मलेशिया, इंडोनेशिया जैसे देशों ने पाकिस्तान के खिलाफ कोई ठोस बयान नहीं दिया। इससे साफ हुआ कि भारत की ‘आइसोलेशन नीति’ वहां असर नहीं दिखा रही।
यूरोपीय संघ और अमेरिका ने भी पाकिस्तान को आतंक-प्रायोजक राष्ट्र घोषित करने की भारत की मांग को अनदेखा कर दिया। भारत को उम्मीद थी कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद उसे वैश्विक समर्थन मिलेगा, लेकिन अधिकांश देशों ने संयम बरतने की सलाह दी।
भारत ने इस बीच अमेरिका और ब्रिटेन के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास किए, लेकिन यह संदेश देने में सफल नहीं हो सका कि पाकिस्तान एक बड़ा खतरा है। पाकिस्तान की जवाबी कूटनीति, उसकी वैश्विक नेटवर्किंग और भारत के अभियानों में संवाद की कमी के कारण भारत की नीति ठहरती दिख रही है।
अब सवाल यह है कि क्या भारत की रणनीति पूरी तरह विफल हो गई है? नहीं, लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि भारत को अपनी विदेश नीति को नए सिरे से देखने की जरूरत है। सिर्फ सैन्य कार्रवाई और कड़ी भाषा से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अपने पक्ष में लाना संभव नहीं है।
भारत को चाहिए कि वह मानवीय, आर्थिक और सांस्कृतिक स्तर पर अपने अभियान को विस्तार दे। साथ ही, उसे यह भी समझना होगा कि आज की बहुध्रुवीय दुनिया में कोई भी देश पूरी तरह से किसी एक पक्ष के साथ नहीं होता। हर देश अपने हितों को प्राथमिकता देता है।
इसलिए पाकिस्तान को अलग-थलग करना केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक और बहुस्तरीय कूटनीतिक यात्रा है, जिसमें निरंतर संवाद, वैश्विक साख और सामरिक संतुलन की जरूरत होगी। फिलहाल, भारत की यह रणनीति एक ठहराव के दौर से गुजर रही है। लेकिन इसे दोबारा गतिशील बनाना असंभव नहीं है—बस तरीका बदलना होगा। पढ़ते रहिये क्वेस्टिका भारत |
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