प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रही तिलोदकी नदी, जिसे ‘तिलोदकी गंगा’ के नाम से भी जाना जाता है, अब पुनर्जीवित होने की ओर अग्रसर है। यह पवित्र धारा, जो वर्षों से उपेक्षा और प्रदूषण का शिकार रही, अब सरकार और स्थानीय लोगों के संयुक्त प्रयासों से एक बार फिर जीवनदायिनी बन रही है। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जनपद स्थित यह नदी ऋषि रमणक की तपोभूमि मानी जाती है, जहां से इसका उद्गम माना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, तिलोदकी नदी न केवल जल का स्रोत रही है, बल्कि श्रद्धा और आस्था का भी प्रतीक रही है। ग्रामीणों के लिए यह नदी एक जीवनरेखा रही है, जिससे सिंचाई, दैनिक उपयोग और धार्मिक क्रियाकलाप जुड़े रहे हैं। लेकिन समय के साथ जल स्तर घटता गया, नदी का स्वरूप सूखने लगा और इसका धार्मिक और पर्यावरणीय महत्व भी धुंधलाने लगा।
हालांकि अब हालात बदल रहे हैं। राज्य सरकार ने ‘नदी पुनर्जीवन अभियान’ के तहत तिलोदकी गंगा को संवारने की दिशा में कदम बढ़ाया है। इसके अंतर्गत नदी की सफाई, गाद निकासी, पौधारोपण, जल संरक्षण के उपाय, और भू-जल पुनर्भरण जैसे कार्य किए जा रहे हैं। इससे न केवल नदी की धारा पुनः प्रवाहित हो रही है, बल्कि उसके आसपास का पर्यावरण भी हरा-भरा हो रहा है।
स्थानीय ग्रामीणों और स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका भी इस अभियान में महत्वपूर्ण रही है। ग्रामीणों ने स्वेच्छा से श्रमदान कर नदी की सफाई में भागीदारी निभाई है। वहीं, धार्मिक संगठनों और संत समाज ने इसे आस्था का विषय बनाते हुए लोगों को जोड़ने का कार्य किया है। इससे सामाजिक जागरूकता भी बढ़ी है और लोग नदी के संरक्षण को अपने धर्म और संस्कृति से जोड़कर देखने लगे हैं।
सरकार की योजना है कि तिलोदकी गंगा को न केवल धार्मिक स्थल के रूप में विकसित किया जाए, बल्कि इसके किनारे पर्यटन और स्थानीय रोजगार के अवसर भी सृजित किए जाएं। इसके तहत घाटों का निर्माण, तीर्थस्थलों का पुनरुद्धार, और नदी किनारे हरित पट्टी का विकास प्रस्तावित है।
तिलोदकी गंगा की पुनरुद्धार यात्रा यह सिद्ध करती है कि यदि जनसहभागिता और सरकारी इच्छाशक्ति एकसाथ हो तो नदियों को नया जीवन दिया जा सकता है। यह केवल एक नदी का पुनर्जीवन नहीं है, बल्कि यह आस्था, प्रकृति और विकास की त्रिधारा को जोड़ने वाली एक प्रेरणादायक कहानी बनती जा रही है। पढ़ते रहिये क्वेस्टिका भारत |
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