हाल ही में अभिनेता आसिफ अली ने अपनी आगामी फिल्म टीकी टाका के लिए शूटिंग के दौरान शारीरिक और मानसिक तौर पर झेले गए संघर्ष को साझा किया। “मैं बच्चों की तरह रोया,” यह बयान एक कलाकार के निजी दर्द और पेशेवर जिम्मेदारी के बीच की लड़ाई को दर्शाता है। लेकिन यह केवल एक अभिनेता की व्यथा नहीं, बल्कि फिल्म इंडस्ट्री में ‘method acting’ और फिजिकल ट्रांसफॉर्मेशन की बढ़ती मांगों और उससे होने वाले दुष्प्रभावों का भी संकेत देता है।
टीकी टाका एक फुटबॉल-आधारित फिल्म है, जो शरीर और आत्मा दोनों की परीक्षा लेती है। रिपोर्ट्स के अनुसार, आसिफ अली को इस फिल्म के लिए एक खिलाड़ी की तरह ट्रेनिंग करनी पड़ी। इस प्रक्रिया में वे कई बार अस्पताल गए, व्हीलचेयर पर रहे, और लंबे समय तक बेडरेस्ट पर रहे। यह दर्द भरी कहानी ऐसे समय में सामने आई है जब सिनेमा में ‘रीयलिज्म’ की मांग बढ़ती जा रही है।
आसिफ अली की स्थिति की पुष्टि खुद अभिनेता ने मीडिया को दी एक प्रेस इंटरव्यू में की। उन्होंने कहा, “शारीरिक व्यायाम और शूटिंग की कठोरता ने मेरी रीढ़ की हड्डी पर असर डाला।” यह दावा उन चिकित्सकीय रिपोर्ट्स से मेल खाता है जो शूटिंग के दौरान एक्टर की हालत को दिखाते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, लंबे समय तक एक्शन सीक्वेंस की शूटिंग और अधिक बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन करने से शरीर पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है, खासकर अगर प्रक्रिया डॉक्टरों की निगरानी में न हो।
यह घटनाक्रम सिर्फ एक अभिनेता की कहानी नहीं, बल्कि एक व्यापक मुद्दे की ओर इशारा करता है — कलाकारों पर फिल्म की “वास्तविकता” को दिखाने के लिए डाले जा रहे दबाव। क्या यह आवश्यक है कि कलाकारों को खुद को जानलेवा स्तर तक झोंकना पड़े? इस पर बहस जरूरी है।
यह भी गौरतलब है कि अधिकतर फिल्मों में इस प्रकार की मेहनत को ग्लोरिफाई किया जाता है, जबकि इसके पीछे की पीड़ा और मानसिक तनाव को नजरअंदाज कर दिया जाता है। आसिफ अली की स्थिति हमें बताती है कि इस ट्रेंड पर पुनर्विचार जरूरी है।
यह घटना न केवल आसिफ अली के व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर असर डालेगी, बल्कि फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले अन्य कलाकारों और टेक्नीशियनों के लिए भी एक चेतावनी है। लंबे शूटिंग शेड्यूल, सुरक्षा उपायों की कमी, और चरित्र में ढलने के नाम पर शरीर को नुकसान पहुँचाना आने वाले समय में कई और मामलों को जन्म दे सकता है।
इसके अलावा, युवा अभिनेताओं और अभिनेत्रियों पर दबाव बढ़ेगा कि वे इसी तरह खुद को नुकसान पहुँचाकर “परफेक्ट परफॉर्मेंस” दें, जो एक खतरनाक ट्रेंड बन सकता है।
ऐसे कई मामले पहले भी सामने आ चुके हैं। आमिर खान को दंगल के लिए वज़न बढ़ाने और घटाने के दौरान स्वास्थ्य समस्याएं हुई थीं। रणदीप हुड्डा को सरबजीत के लिए अत्यधिक वज़न घटाने पर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था। हॉलीवुड में भी द मशीनीस्ट* के लिए क्रिश्चियन बेल की बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन को लेकर डॉक्टरों ने चेतावनी दी थी।
यह एक पैटर्न बनता जा रहा है जहां ‘परफॉर्मेंस’ के नाम पर शरीर को माध्यम बना दिया गया है, और मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा की जा रही है।
आसिफ अली की टीकी टाका यात्रा केवल एक अभिनेता की मेहनत की कहानी नहीं है, बल्कि यह आज के सिनेमा के बदलते चलन और उसके खतरनाक प्रभावों का प्रतीक है। एक स्वस्थ कार्य वातावरण, पेशेवर मेडिकल सहयोग, और कलाकारों की भलाई को प्राथमिकता देना अब अनिवार्य हो गया है।
यह घटना दर्शकों, निर्माताओं और नीतिनिर्माताओं के लिए एक चेतावनी है कि कला की कीमत कलाकार की जान नहीं होनी चाहिए।
यदि फिल्म इंडस्ट्री इस दिशा में सुधार नहीं करती, तो आने वाले वर्षों में ऐसी घटनाएं आम हो सकती हैं — और तब सिनेमा की चमक के पीछे छिपे अंधेरे को कोई अनदेखा नहीं कर पाएगा।
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