भारतीय राजनीतिक इतिहास में इमरजेंसी का दौर एक महत्वपूर्ण मोड़ रहा है। इस अवधि में नागरिक स्वतंत्रताओं की सुरक्षा पर व्यापक संकट आया, और अचानक भारतीय राज्य पर नागरिक अधिकारों की रक्षा का भरोसा कम हो गया। यह स्थिति एक गंभीर खतरे के रूप में सामने आई जिसने देश की राजनीतिक व्यवस्था और लोकतंत्र की नींव को हिला दिया।
1975 से 1977 तक चली यह इमरजेंसी, जहां कई राजनैतिक नेताओं को जेल में डाला गया, वहीं प्रेस की स्वतंत्रता पर भी सेंसरशिप लागू हुई। जनता में असंतोष फैलने से राजनैतिक परिदृश्य में बड़े बदलाव आए। इसके बाद भारतीय राजनीति ने नए समीकरण खोजे और लोकतंत्र को मजबूत किया।
दिल्ली में आयोजित एक खास प्रदर्शनी में इस ऐतिहासिक घटना पर प्रकाश डाला गया जहाँ लोग इस दौर की वास्तविकताओं को समझने के लिए जुटे। इमरजेंसी ने यह सिखाया कि लोकतंत्र के संरक्षण के लिए सभी नागरिकों की जिम्मेदारियों को समझना जरूरी है।
यह घटना आज भी राजनीतिक विमर्श का विषय बनी हुई है और लोकतंत्र की मजबूती के लिए एक प्रेरणा स्रोत है।
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