नई दिल्ली में, इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव के चलते भारत की ऊर्जा सुरक्षा और तेल भंडार को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं। इस संघर्ष के संभावित प्रभावों का आकलन करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए काफी हद तक मध्य पूर्व पर निर्भर है।
इजरायल-ईरान संघर्ष का वैश्विक तेल बाजार पर प्रभाव
इजरायल और ईरान के बीच तनाव के चलते, खासकर यदि यह संघर्ष उग्र रूप लेता है, तो वैश्विक तेल बाजार में आपूर्ति कटौती और मूल्य में वृद्धि हो सकती है। ईरान खाड़ी क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण तेल उत्पादक है, और इस क्षेत्र में किसी भी अस्थिरता से आपूर्ति नेटवर्क प्रभावित हो सकता है।
भारत की तेल भंडार और आपूर्ति सुरक्षा
भारत परंपरागत तौर पर अपने अधिकांश कच्चे तेल की सप्लाई मध्य पूर्व के देशों से प्राप्त करता है। इस संदर्भ में,
- स्टेट ऑइल रिजर्व (स्टॉर्क) का महत्व बढ़ जाता है, जो आपातकालीन स्थितियों में तेल की आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
- सरकार द्वारा कच्चे तेल के भंडारण क्षमता बढ़ाने के प्रयास जारी हैं ताकि संकट की स्थिति में देशों को आपूर्ति बाधित न हो।
- वैकल्पिक आपूर्ति स्रोतों की तलाश और ऊर्जा विविधता बढ़ाने की रणनीतियां भी अपनाई जा रही हैं।
संक्षेप में संभावित चुनौतियां
- तेल की आपूर्ति में अनिश्चितता और उत्पादों की कीमतों में तेजी।
- आर्थिक दबाव बढ़ना, जो व्यापक स्तर पर व्यापार और विकास को प्रभावित कर सकता है।
- ऊर्जा सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक कदमों की तीव्रता।
अतः, इजरायल-ईरान संघर्ष से भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर प्रभाव पड़ने की संभावना है, लेकिन भारत की संतुलित रणनीतियाँ और भंडार नीतियां इस तरह की आपदाओं से निपटने में सहायक साबित होंगी।
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