महाराष्ट्र सरकार ने प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी को अनिवार्य करने के अपने आदेश को वापस ले लिया है। यह निर्णय व्यापक विरोध के बाद लिया गया जो मुख्य रूप से मराठी भाषी समुदाय द्वारा किया गया था। इस विवाद ने राज्य में भाषा नीति और बहुभाषी शिक्षा पर चर्चा को जन्म दिया है।
घटना का विवरण
अप्रैल 2024 में महाराष्ट्र के स्कूल शिक्षा विभाग ने प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी को अनिवार्य बनाने का आदेश जारी किया था। इसके बाद कई क्षेत्रों, विशेष रूप से मराठी भाषी समुदाय से इस फैसले का विरोध किया गया। विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक दवाब के कारण सरकार ने 15 मई 2024 को हिंदी अनिवार्यता के आदेश को वापस लेने का ऐलान किया।
प्रमुख पक्ष
- समर्थक: महाराष्ट्र स्कूल शिक्षा विभाग, राज्य सरकार के मंत्री, बीजेपी के स्थानीय नेतृत्व, हिंदी शिक्षण समर्थक संगठन।
- विरोधी: मराठी भाषी संगठनों, शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP), विभिन्न सामाजिक समूह।
आधिकारिक बयान
शिक्षा मंत्री ने कहा कि छात्रों के हितों और भाषा विविधता को ध्यान में रखते हुए हिंदी की अनिवार्यता का आदेश वापस ले लिया गया है। अब स्कूल अपनी स्थानीय भाषा शिक्षण नीति के अनुसार पाठ्यक्रम तैयार कर सकेंगे।
प्रमुख आँकड़े
- राज्य में लगभग 60% छात्र मराठी माध्यम से शिक्षा प्राप्त करते हैं।
- हिंदी अनिवार्यता के कारण 40 लाख से अधिक बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव की आशंका थी।
- विरोध प्रदर्शन के दौरान 10 जिलों में 200 से अधिक स्कूलों के अभिभावकों ने विरोध पत्र सौंपे।
तत्काल प्रभाव
- छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों को राहत मिली।
- राज्य में भाषाई विवाद कम हुए।
- स्थानीय और दक्षिण भारतीय भाषाओं से संबंधित शिक्षण सामग्री की मांग बढ़ी।
- शिक्षा क्षेत्र में स्थिरता बनी रहने के संकेत मिले।
प्रतिक्रियाएँ
सरकार ने इसे पुनर्विचार और संवाद की जीत बताया। विपक्षी दलों ने जनता की आवाज़ की सफलता माना। विशेषज्ञों ने भाषा नीति में संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। शिक्षाविदों ने भाषा विविधता और समान अवसरों के महत्त्व पर बल दिया।
आगे की योजना
महाराष्ट्र सरकार अगले छह महीनों में बहुभाषी शिक्षा नीति तैयार करेगी, जिसमें स्थानीय भाषा, हिंदी और अंग्रेज़ी का संतुलित समावेश होगा। इसके लिए विशेषज्ञ समिति गठित की जाएगी और आगामी संसदीय सत्र में इस नीति पर चर्चा होगी।
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