सुप्रीम कोर्ट ने जल संरक्षण के लिए एक ऐतिहासिक पर्यावरण निर्णय सुनाया है, जिससे जल संसाधनों के संरक्षण और सतत विकास को नई दिशा मिलेगी। यह फैसला 2024 के पहले श्रमाह में नई दिल्ली में दिया गया, जिसमें केंद्र एवं राज्य सरकारों सहित सभी संबंधित पक्षों को जल संरक्षण में तत्काल प्रभाव से उचित कदम उठाने के निर्देश दिए गए हैं।
घटना क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने जल संरक्षण को लेकर दायर जनहित याचिका पर विचार करते हुए जल प्रबंधन नीति में सुधारों की आवश्यकता को स्वीकार किया। कोर्ट ने प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण के लिए कड़े नियम जारी किए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- नदियों और जलाशयों की अवैध निकासी पर रोक लगाना
- वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना
यह फैसला भारत में बढ़ते जल संकट को ध्यान में रखते हुए किया गया है।
कौन-कौन जुड़े?
इस मामले में मुख्य पक्ष थे:
- केंद्र सरकार का पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
- विभिन्न राज्य सरकारें
- भारतीय जल संसाधन विभाग
- पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्यरत सामाजिक संगठन और जनहित से जुड़े गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ)
सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने मामले की सुनवाई की और नियम बनाने का निर्देश दिया।
आधिकारिक बयान और दस्तावेज़
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अगले वित्त वर्ष के लिए ₹1500 करोड़ की राशि जल संरक्षण कार्यक्रमों में आवंटित करने का प्रस्ताव दिया है।
- कोर्ट ने संबंधित राज्य सरकारों को 6 माह के भीतर अपने जल संरक्षण कार्यों की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश दिए हैं।
- सरकारी नीतियां जल संरक्षण को प्राथमिकता देंगी और उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई होगी।
पुष्टि-शुदा आँकड़े
- भारत में प्रति वर्ष उपलब्ध जल स्रोतों की मात्रा पिछले दस वर्षों में लगभग 15% घट चुकी है।
- वर्ष 2023 में जल संकट प्रभावित जिलों की संख्या 330 से बढ़कर 390 हो गई है।
- वर्षा जल संचयन कार्यक्रम से जल संग्रहण में औसतन 10% की वृद्धि दर्ज की गई है।
तत्काल प्रभाव
यह निर्णय सीधे तौर पर नागरिकों, कृषि क्षेत्र और उद्योगों को प्रभावित करेगा क्योंकि जल उपयोग पर नियंत्रण कड़े होंगे।
इसके अन्य प्रभाव हैं:
- कम हो रहे जल स्तर को सुधारने के लिए आवश्यक कदम
- जल संरक्षण संबंधी तकनीकों में तेजी से विकास और निवेश की संभावना
- भविष्य में जल आयोग और व्यवस्थापन बोर्डों की भूमिका प्रभावी होगी
प्रतिक्रियाएँ
- सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को सकारात्मक कदम बताया है।
- विपक्ष ने कहा कि कड़े नियंत्रण से किसानों और उद्योगों को असुविधा हो सकती है।
- जल विशेषज्ञों ने इसे जल संरक्षण के लिए मील का पत्थर बताया है।
- सामाजिक संगठनों ने जल संरक्षण के पूर्व प्रयासों की अपर्याप्तता पर आलोचना की है और अब कार्य प्रभावी होने की उम्मीद जताई है।
आगे क्या?
- सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को छह माह में जल संरक्षण कार्यक्रमों की प्रगति की रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।
- केंद्र एवं राज्य सरकारें जल नीति में आवश्यक संशोधन शीघ्र लागू करेंगी।
- पर्यावरण विशेषज्ञों की मान्यता है कि नई योजनाएँ और तकनीकें अपनाई जाएंगी।
- आगामी मानसून सत्र में संसद में जल नीति पर चर्चा होने की संभावना है।
जल संरक्षण के प्रति यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला भारत में पानी की बचत और सतत विकास की दिशा में निर्णायक कदम माना जा रहा है।
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