नई दिल्ली, 21 मई 2025: सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून को लेकर महत्वपूर्ण सुनवाई हुई जिसमें कई अहम वाद-विवाद सामने आए। इस सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह दलील दी कि वक्फ इस्लाम धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। उन्होंने कहा कि वक्फ को हिंदुओं में दान और ईसाइयों में चैरिटी की तरह एक प्रथा माना जाता है, न कि जरूरी अनिवार्य तत्व।
सॉलिसिटर जनरल की दलीलें
- वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं: तुषार मेहता ने स्पष्ट किया कि चैरिटी हर धर्म में होती है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है।
- मुस्लिम समुदाय की वित्तीय स्थिति: उन्होंने कहा कि अगर अधिकांश मुस्लिम वित्तीय कारणों से वक्फ नहीं कर पाते तो भी वे मुस्लिम कहलाएंगे।
- वक्फ का कानूनी दर्जा: केंद्र ने बताया कि वक्फ मौलिक अधिकार नहीं है और इसे 1954 के कानून द्वारा मान्यता मिली है, जो पहले बंगाल एक्ट के अधीन था।
- राज्य का अधिकार: तुषार मेहता ने कहा कि कोई भी विधिक अधिकार राज्य द्वारा बदला या समाप्त किया जा सकता है।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
इस मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन ने भी बहस में भाग लिया। उन्होंने केंद्र के तर्कों का विरोध किया और अपने पक्ष में मजबूत तर्क प्रस्तुत किए।
संविधान और संशोधित कानून
केंद्र का तर्क यह है कि वक्फ संशोधन कानून संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन नहीं करता, जो धार्मिक स्वतंत्रता और संपर्क अधिकारों से संबंधित हैं।
सुनवाई का महत्त्व: यह मामला इस्लाम के धार्मिक अधिकारों और राज्य की कानून व्यवस्था के बीच एक महत्वपूर्ण संधि का प्रतिनिधित्व करता है, जो भविष्य में धार्मिक संपत्ति और अधिकारों पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है।
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